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________________ 1 ४७ इन्होंने 'मन्तोपछत्तीसी' की रचना कर संघ के समक्ष उपदेश दिया, जिससे संघ में ऐक्य और प्रेम स्थापित हो गया। यहीं इन्होंने 'कल्पसूत्र पर 'कल्पलता २८ नामक टीका प्रारम्भ की तथा १६८५ में जयकीर्ति गणि की सहायता से 'दीक्षा-प्रतिष्ठा-शुद्धि' नामक ज्योतिष ग्रन्थ रचा। इसी वर्ष यहाँ 'विशेष संग्रह', 'विसंवाद शतक' और 'बारह व्रत रास' ग्रन्थ वनाए। 'यति-आराधना' तथा 'कल्पलता' की रचना इसी वर्ष रिणी में समाप्त की। सं० १६८६ में 'गाथासहस्त्री' नामक संग्रह-ग्रन्थ तैयार किया। १६८७ में पाटण आए और 'जयतिहुअण वृत्ति' तथा 'भक्तामर स्तोत्र' पर 'सुबोधिका' वृत्ति बनाई। यहाँ से ये अहमदावाद आए। १६८७ में गुजरात में भयंकर दुष्काल पड़ा था, जिसका सजीव __एवं हृदय-द्रावक वर्णन कवि ने विशेषशतक' की प्रशस्ति (श्लोक ७) तथा 'चंपकवेष्ठि चौपाई' में संक्षेप मे एवं 'सत्यासिया दुष्काल वर्णन छत्तीसी'२९ में विस्तार के साथ किया है। १६८८ का चातुर्मास्य उन्होंने अहमदावाद में किया और वहाँ 'नवतत्व-वृत्ति वनाई। १६८६ का चातुर्मास्य भी यहीं किया और स्थूलिभद्र सज्झाय' की रचना की। १६६० में खंभात गए और वहां 'सवैया छत्तीसी', 'स्तंभन पार्श्व स्तवन' तथा 'खरतरगच्छ पट्टावली' की रचना की। १६६१ का चातु स्यि खम्भात के खारवापाड़ा स्थान मे किया और वहाँ 'थावच्चा चउपई', 'सैतालीस दोष समाय' तथा दशवेकालिक सूत्रवृत्ति' की रचना की। २७-२८-'जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्वार फड, सूरत से प्रकाशित । २६-'भारतीय विद्या, वर्ष १ अंक २
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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