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________________ [ ४५ ] 'उपाध्याय' पद पाना निश्चित है। पद्ममंदिर कृत 'ऋषिमंडल वृत्ति' । इन्हें १६७२ में बीकानेर-निवासिनी श्राविका रेखा ने समर्पित की थी। इसकी प्रति जयपुर के पंचायती भंडार में है। - बीकानेर से ये मेड़ता आए। यहाँ सं० १६७२ में 'समाचारी शतक' तथा 'विशेष शतक'२० ग्रंथो की रचना समाप्त हुई। "प्रियमेलक चउपई२१ तथा सम्भवतः 'पुण्यसार चौपई' की रचना भी यहीं इसी वर्ष हुई। सं० १६७२ का चातुर्मास्य इन्होंने मेडता मे ही किया और कार्तिक शुक्ल ५ को यहाँ के ज्ञानभण्डार को 'जम्बू-स्वामी चरित्र' प्रदान किया, जिसकी प्रति आजकल बीकानेर के श्री क्षमाकल्याण ज्ञानभंडार मे। यहीं सं० १६७३ मे वा० हर्पनन्दन के साहाय्य से 'गाथालक्षण' ग्रन्थ लिखा, जिसकी प्रतिलिपि हंस विजयजी फ्री लायबेरी, बड़ोदा मे है। इसी वर्ष यहाँ वसन्त ऋतु में 'नल-दमयन्ती चऊपई भी बनाई। सं० १६७४ मे यहीं 'विचार-शतक' भी बनाया । इस प्रकार मेड़ता के चार चौमासों में ये निरन्तर साहित्य-निर्माण करते ___सं० १६७५ में इन्होंने जालोर में दादा श्रीजिनकुशलसरि की चरणपादुकाओं की प्रतिष्ठा करवाई, जिसका उल्लेख पादुकाओं के अभिलेख में है। १६७६ में राणकपुर तीर्थ की यात्रा की और १६७७ मे पुनः मेड़ता आए। इस वर्ष चातुर्मास्य अपनी जन्मभूमि साँचोर मे किया। यहीं 'सीताराम चौपाई' की ढाल बनाई और 'निरयावली २०-इस ग्रंथ में १०० सैद्धातिक प्रश्नो के उत्तर है। यह प्रकाशित है। २१-इसकी कई सचित्र प्रतियाँ भी मिलती हैं।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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