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________________ [ ४३ ] शीतपुर माहें जिण सममावियउ, मखनूम महमद सेखो जी। जीवदया पड़ह फेरावियो, राखी चिहुँ खड रेखो जी ॥ ३ ॥ ( देवीदास, समयसुदर गीत) सिंधु विहारे लाभ लियो घणो रे, रजी मखनूम सेख । पाचे नदिया जीवदया भरी रे, वलि घेनु विशेष || ५ || (वादी हर्षनदन, समयसुंदर गीत ) सिंध प्रांत मे ये लगभग दो-ढाई वर्ष विचरे थे। इनकी विशिष्ट कृति 'समाचारी शतक १७ का प्रारम्भ सिद्धपुर में होकर कुछ भाग मुलतान में रचा गया। सिंध१८ मे ही विहार के समय एक बार ये नौका में बैठकर उच्चनगर जा रहे थे। अधेरी रात मे अकस्मात् भयानक तूफान और वर्षा के कारण नदी के वेग से नौका खतरे से पड़ गई। उस समय इनकी भक्ति से आकर्पित हो दादागुरु श्री जिनकुशलसूरि ने तत्काल देरावर से आकर उस संकट में इनकी सहायता की । उस घटना का वर्णन इन्होने 'आयो आयो री समरंता दादो जी आयो' इत्यादि पद से स्वयं किया है। श्री जिनकुशलसूरि में इनकी अटूट श्रद्धा थी१९ और उनका स्मरण इन्होंने 'रास चौपाई आदि कृतियों में बड़ी भक्ति के साथ किया है। ___सिंध प्रांत से ये मारवाड आए। उसी समय बिलाड़ा में श्री जिनचन्द्रसूरि का स्वर्गवास हो गया। दूर होने के कारण ये अपने १७-~'श्री जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्धार फड', सूरत से प्रकाशित । १८-द्रष्ट० 'वर्णी अभिनंदन ग्रथ' में 'सिंध प्रात तथा खरतरगच्छ' शीर्षक लेख। १६-द्रष्ट० हमारी 'दादा श्री जिनकुशलसूरि' पुस्तक ।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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