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________________ [ ३७ । समयसुंदर भायउ पइसारउ नीकउ वणायउ श्री सघ साम्ह आयउ सज्जकरि हथियाँ । गावत मधुर सर रूपइ मानु अपछर मुदर सूव करइ गुरु आगइ सथियाँ ||३|| इसके पश्चात् अकबर और जहांगीर की श्रद्धा वा० महिमराज के प्रति उत्तरोत्तर बढ़ती गई और जव अकवर ने सं० १६४६ में काश्मीरविजय के लिये स्वयं जाना निश्चित किया तो उसने श्री जिनचंद्रसुरि से वा० महिमराज को धर्मोपदेश के लिये अपने साथ भेजने की विज्ञप्ति की। तदनुसार श्रावण सुदी १३ को संध्या समय काश्मीरविजय के उद्देश्य से प्रयाण कर सब लोग राजा श्रीरामदास की वाटिका में ठहरे। उस समय अनेक सामंतों, मंडलीकों तथा विद्वानों की सभा मे कवि समयसुन्दर ने अपने अद्वितीय ग्रंथ 'अष्टलक्षो' को पढ़कर सुनाया। इसे सुन सम्राट् वहुत चमत्कृत हुआ और भूरि-भूरि प्रशंसा करके इसका सर्वत्र प्रचार हो' कहते हुए उसने अपने हाथ से उस ग्रंथरत्न को ग्रहण कर उसे कवि के हाथों में समर्पित किया।, इस अभूतपूर्व ग्रंथ में "राजानो ददते सौख्यं” इस आठ अक्षर वाले वाक्य के १०२२४०७ अर्थ किए गए है। कहा जाता है कि किसी समय एक जनेतर विद्वान् ने जैन धर्म के “एगस्त सुत्तस्स अनंतो अत्थो" वाक्य पर उपहास किया था, उसी के प्रत्युत्तर में कवि ने यह ग्रंथ रच डाला। ६-यह अथ देवचद लालभाई पुस्तकोद्धार फंड, सूरत से प्रकाशित हुआ है। इसमें कवि ने स्वय उपयुक्त वृत्तात लिखा है।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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