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________________ [ ३५ ] ने इन्हें अपने प्रथम शिष्य रीहड़-गोत्रीय श्री सकलचंद्र गणि के शिष्य रूप में दीक्षित किया था। विद्याध्ययन-इनके गुरु श्री सकलचंद्र जी इनकी दीक्षा के कुछ ही वर्षों बाद स्वर्गवासी हुए, अतः इनका विद्याध्ययन सूरिजी के प्रधान शिष्य महिमराज और समयराज के तत्वावधान में हुआ। इसका उल्लेख कवि ने स्वयं इस प्रकार किया है श्री महिमराज वाचक वाचकवर समयराज गुण्याना मद्विद्य कगुरूणा प्रसादतो सूत्रशतकमिदम् ।। (भावशतक, १११) श्री जिनसिंह मुनीश्वर वाचकवर समयराज गणिराजाम् मद्विये कगुरूणामनुग्रहो मेऽत्र विज्ञ यः ।। ( अष्टलक्षी, २८) संघपति सोमजी के संघ के साथ शत्रुजय-यात्रासं० १६४४ में श्री जिनचन्द्रसूरि खंभात में चातुर्मास्य कर अहमदावाद आए। उनके उपदेश से शत्रुजय का माहात्म्य श्रवण कर पोरवाड़बातीय सोमजी और उनके भाई शिवा ने शत्रुजय का संघ निकाला, जिसमें मालव, गुजरात, सिंधु, सिरोही आदि नाना स्थानों के यात्रीसंघ आकर सम्मिलित हुए थे। इस सघ में कवि समयसुंदर भी अपने दादा-गुरु और विद्यागुरु आदि के साथ शत्रुजय गए और चैत्र वदी ४ बुधवार को महातीर्थ शत्रुजय गिरिराज की यात्रा की । इसका उल्लेख कवि ने अपने 'शत्रुजय भासद्वय' से इस प्रकार किया है-- ७-खरतरगच्छ पट्टावली के अनुसार इनकी दीक्षा वि० १६१२ में बीकानेर में हुई थी। ८-द्रप्ट० 'युगप्रधान जिनचद्रसूरि', पृ० २४०
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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