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________________ [ ३३ ] पोरवाड़ जाति के बुद्धि-वैभव की विशेषता 'प्रज्ञाप्रकर्ष प्राग्वाटे' वाक्य 'द्वारा वतलाई है। विमल-प्रबंध में पोरवाड़ जाति के सात गुणों में चौथा गुण "चतुः प्रजाप्रकर्पवान्" लिखा है जो प्राचीन इतिहास के अवलोकन से सार्थक हो सिद्ध होता है। गुजरात के महामन्त्री वस्तुपाल, तेजपाल ने अरिसिंह आदि कितने ही कवियों को आश्रय दिया, उत्साहित किया और स्वयं वस्तुपाल ने भी 'वसंतविलास' नामक सुन्दर काव्य की रचना कर अपने अन्य सुकृत्यों पर कलश चढ़ा दिया। इससे पूर्व महाकवि-चक्रवर्ती श्रीपाल ने भी शतार्थी, सहस्रलिंग सरोवर, दुर्लभ सरोवर, रुद्रमाला की प्रशस्ति महाराज सिद्धराज के समय में और बड़नगर-प्रशस्ति तथा कई स्तवनादि महाराज कुमारपाल के समय में सं० १२०८ में बनाए। इनका पोत्र विजयपाल भी अच्छा कवि था। इसका रचा द्रौपदी-स्वयंवर नाटक जैन-आत्मानंद सभा, भावनगर से प्रकाशित है। सतरहवीं शती में इसी वंश में 'श्रावक महाकवि अपभदास" हुए, जो कवि के समकालीन थे। प्राग्वाट ( पोरवाड़) जाति को प्रज्ञाप्रकर्पता के ये उदाहरण है। इसी पोरवाड़ २-बड़ोदा ओरियंटल सीरीज से प्रकाशित । सबंधित कवियों के विषय में द्रष्टव्य-डा० भोगीलाल साडेसरा कृत 'वस्तुपाल का विद्यामडल' (जैनसस्कृति-सशोधक-मंडल, वनारस)। ३--'जैन-सत्य-प्रकाश', वर्ष ११ अक १० ४-'बानद-काव्य-महोदधि', मौक्तिक ८ ५–'अनेकात', वर्ष ४ अंक ६ एव 'बोसवाल', वर्ष १२ अंक ८.१० मे प्रकाशित लेखक के लेख।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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