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________________ ( २७६ ) ए नवखंडनी वात सहु, कहीं गौतम गणधार । श्रेणिक राजा आगलिं, आणी मनि उपगार ॥५॥ परमारथ ए पीछज्यो, किणहीनो कूडो आल | दीजइ नहि, वलि पालियड,-सील वरत सुरसाल ।।६।। सीलई संकट सवि टलइ , सीलइ संपत्ति थाय । प्रह उठिनइ प्रणमीयई, सोलवंत ना पाय ।। ७ ।। सतीया माहे सलहीयई, सीता नामइं नारि । सीता सरिपो को नही, सहु जोता संसारि ।।८।। सर्वगाथा ||३२८ ढाल ७ । राग धन्यासिरी ॥ ढाल~सील कहइ जगि हु बड़ो ए संवादशतक नी वीजी ढाल अथवा पास जिणद जुहारियइ ।। ए तबननी ढाल || सीतारामनी चउपई, जे चतुर हुयइ ते वाचो रे। राग रतन जवहर तणो, कुण भेद लहइ जे काचो रे ॥१॥ सी० नवरस पोष्या मई इहां, ते सुघडो समझी लेज्यो रे। जे जे रत पोष्या इहा, ते ठाम दीखाडी देज्यो रे ।। २।। सी० के के ढाल विषम कही, ते दूपण मति घो कोई। स्वाद सावूनी जे हुयइ, ते लिहंगट कदे न होइ रे ।। ३॥ सी० जे दरबारि गयो हुस्याई, ढुंढाडि सेवाडिनई दिल्ली रे। गुजराति मारुयाडि मइ, ते कहिस्यइ ढाल ए भल्ली रे ॥४॥ सी०
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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