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________________ ( २७३ ) लखमण रावण वे जणा, आणी उपसम सार। काल गमाडई आपणो, रहता नरक मझार ॥३७|| सर्वगाथा ||२६|| ॥राग केदारा गउडीमिश्र ॥ "वीरा हो थारइ सेहरई मोह्या पुरुष वियार । लाडण वी० ॥ए वीवाह रा गतनी ढाल ।। एक दिवस आवी करी, रामनइ प्रदक्षिणा देइ । केवली । विधिसेतो दादी करी, सीतेन्द्र प्रसन करेई ।।१।। ३० आगिल्या भव इम कहइ, श्रीरामचंद मुणिंद केoll आं० कहो सामी ए नरक थी, नीसरि उपजिस्यइ केथि केला मुगति लहिस्य किण भवइ, मिलिस्यइ वली मुझ केथि ।।२।। के० मुझन मुगति कदे हुस्वइ, ते पूज्य करो परसाद । के० श्रीराम वोल्या केवली, सीतेन्द्र सुणि तुं अतंद्र ॥३॥ के० लखमण रावण वे जणा, नरगथी नोसरि तेह । के० विजयनगर' श्रावक कुलई, अवतार लेस्यइएह ।।४।। के० नंद नारिनंदन हुस्यइ, अरहदास १ श्रोदास ||२|| के० श्रावकनो धरम समाचरी, लहि सरग लील विलास शाके० वलि देवलोक५ थी चवी, नगरी तिणइ नर होड। के० दानना परभाव थी, हुत्यइ युगलिया वलि सोइ ।।६। के० . . . १--पूर्व विदेह २-रोहिणी ३-जिनदास ४-सुदर्शन ५-प्रथम ६-विजय ७-हरिवः १८
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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