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________________ ( २६५ ) संसार एह असार कारिमो राग सकल कुटंब तणो । स्वारथ तणो सहु को मिल्या तिण राज छोड्यो कात आपणो ॥२८ मात पिता वांधव सहू, भारिजा भगिनी पुत्रोजी। मरणथी को राखइ नही, नहि ईरत नई परत्रो जी।। ईरत परत्त राखड नहि को, करि आतमहित तुहिवई। तु छोडि राजनई रिद्धि सगली जिम लहन सुख परभवः ।। जिम तुज्झ वांधव मुंयो तिम कुण तुज्झनइ राखड़ पहू । तु चेति चेति हो चतुर नरवर मात पिता बांधव सहू ।।६।। इम सभिलता रामनई, नाठउ मोह पिसाचो जी। अध्यवसाय आयो भलो, सठ ए कहइ छइ साचो जी ।। सहु साच कहइ छइ एह मुझनई बंधु प्रेम उतारियउ । संसार दुखु मझार ए सहि मुयो लखमण जाणियउ ।। मुझ कही वात तुम्हे तिकातो माहरा हित कामना। दुरगति पडतो तुम्हे राख्यो इम साभलता राम नइ ||३०|| कुण उपगारी छउ तुम्हे, किहा थी आया एथोजी। उपगार किम मुझनइ कीयो, किम भाइ मुयो तेथोजी ।। किम भाई मुयो माहरो इम पूछता प्रगट कीयो। देवता केरो रूप कुंडल चलत आभरण अलंकियो। श्रीराम साभलि तुज्झनइ प्रतिबोधिवा आया अम्हे। कहइं आपणी ते वात सगली कुण उपगारी छठ तुम्हे ।।३।। तेह जटायुध पंखीयो, तुम नउकार प्रभावोजी। चउथंइ देवलोकि ऊपनो, सीताहरण प्रस्तावो जी ।।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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