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________________ ( २६२ ) ऊठिनइ आपे जाइसां कोई न कह कुवचन बकिनइ । तिण देसिनइ परदेस भमस्या तिण कारण सोग मूकिन३ ।। १७ ।। इम खेचर निभरंछिया, ले लखमणनी देहो जी। कांधइ घाली नीसस्यो, वलि वइसात्यो तेहो जी॥ वइसारि मज्जण पीढ ऊपरि अनेरी ठामई जई। न्हदरावीयो जल कनक कलस कलेवर सुसतइ थई ।। वलिवस्त्र उत्तम सखर आभ्रण लखमणनइ पहिराविया । भोजन भला मुखमाहि घाल्या इम खेचर निभ्रंछिया ।। १८॥ इणपरि राम सेवा करइ, लखमण मृतकनी नित्तो जी। मोहनी करम वाह्यो थको परिहा राज कलत्तो जी॥ परिहा राजकलत्र सगला मास छ गया जेहवई। संवुक खरदूपण तणो लह्यो वयर अवसर तेहवइ ।। तेहनापुत्रादिक विद्याधर कटक करिनइ नीसरह । ततखिण अयोध्या नगरि आवई इण परि राम सेवा करइ ।।१६।। राम वृतान्त ते जाणिनई लखमणनइ ठवि तेथ्यो जी। धनुप चडावि साम्हो थयो, विद्याधर रिपु जेथ्यो जी ।। रिपु जेथि कोपारुण थईनइ क्रूरदृष्टि करी यदा.। सुरवर जटायुध कृतातमुखनो कापियो आसन तदा ।। तिण आवि रामनइ दियो साहिज कटक सबलो आविनइ । आकास मारगि ले विकुरव्या राम वृतांत ते जाणिनइ ॥ २० ॥ सुर वलि चोट सबल करी, विद्याधरना वृन्दो जी। ततखिण ते नासी गया, जीतो श्रीरामचंदो जी।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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