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________________ ( २५८ ) इंद्रना वचन सुणी करी, कौतुक आणी चित्तोजी। तुरत अयोध्या नगरमई, दो देवता संपत्तो जी ।। संपत्त दो देवता तिहा कणि रामनई घरि आवीया । देवनी माया केलवी नइ अंतेउर रोवराविया ।। ते करउ हाहाकार सगली रामनी अंतेउरी। हा राम प्रीतम किण हस्यो तुं इन्द्र ना वचन सुणी करी ॥४॥ हाहाकार लखमण सुणी, धाई आयो पासो जी। कहइ मुम वांधवकिणहत्यो, राणी रोयइ उदासो जी।। उदास राणी केम रोयइ इम कहतो लखमण तदा । वाधव तणो अति दुख करतो पड्यो जाणि हण्यो गदा ॥ अण बोलतो रह्यो आंखि मीची मुयो' जाण्यो भणी। पछताव करिवा देवलागा हा हा कार वचन सुणी ॥५॥ अविचास्यो अम्हे कीयो, ए कौतुकनो कामोजी। अम्हे लखमणना मरणना, हेतु थया इण ठामो जी ।। इण ठामि लखमण मरण पास्यो पाप लागो अम्ह भणी। हासा थकी ए थई वेषासी वात वाधी अति घणी ।। १-भवेस्मिन्मेव सुदत्त जीवो भूल्लक्ष्मणोऽनुजः । तत्राप्य मुख्य कौमारेमुघागाच्छरदा शत ||१|| शतत्रय मडलित्वे चत्वारिंशतु दिग्जये । वकादश सहस्रासाद्धराज्येऽन्दष्टि च ||२|| द्वादशाब्द सहस्राणि सर्वमायुरितिक्रमा। ययाविर तस्यैव केवल नरकावहम् ॥२॥ इति पद्मचरित्रे दशमस लक्ष्मणायु.॥३॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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