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________________ ( २२२ ) सकल कटक भागो देखियो, कुमर पराक्रम थी चमकीयो। पृथु राजा आवी नई मिल्यो, सह संताप हिव अलगो टलो ||१३|| निज अपराध खमावइ राय, प्रौढ़ पराक्रम वंस जणाय । उत्तम कुलि उपन्ना तुम्हे, ए वात जाणी निश्चय अम्हे ॥१४॥ वनजंघ नइ पृथु राजान, माहोमाहि मिल्या बहु मान । एहवइ नारद रिपि आवियो, सगलाही नई मनि भावियो ।।१।। वजंघ पूछी उतपत्ति, कुमर तणी नारद कहइ झत्ति । सुरिज वंसी एह कुमार, सीता राम थकी अवतार ॥१६॥ नि.कलंक सीता नई आल, लोके दीधो थयो जंजाल । अपजस राखण भणी अपार, रामई मुंकी डंडाकार ॥१७॥ एहवा कुमर तणा अवदात, सहु हरखित थई नई कहइ बात। सीहणि ना सीह एहवा होइ, जुगत पराक्रम एहनो जोइ ॥१८॥ रिपि नइ पृछ्यो कुमर हजूरि, नगरी अयोध्या केतो दूरि । सो जोयण ते इहा थी होइ, कहइ नारद जाणइ सहु कोइ ॥१६॥ जिहा तुम्ह पिता रहई श्रीराम, काको लखमण पणि तिण ठाम । कुमर बात सुणी कोपीया, दाखिण वाप तणा लोपीया ॥२०॥ मात अम्हारी छोड़ी राम, कुण अखन कीधो इण काम । वनजंघ सुणो वीनती, लव कहइ सज्ज थावो अम्ह वती ॥२१॥ नगर अयोध्या जास्या अम्हे, मदत अम्हारी करिज्यो तुम्हे । जुद्ध करी नई लेम्या वयर, आजथो को छोडइ नहीं वयर ।। २२ ।। वजजंध कहइ प्रस्तावि, सर्व हुस्यइ सुसता' समभावि। एहवई पृथु पुत्री आपणी, कनकमाला दीधी कुस भणी ॥ २३ ॥ १-सम सासतइ समावि ।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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