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ढाल त्रीजी । नोखा रा गीत नी जाति ।। माल्याड, दृढाड़ मई प्रसिद्ध छ।
राग--मल्हार हा चंद्रवदनी हा मृगलोयणी, हा गोरी गजगेलि । चतुर सुजाण रे सीता नारि, कनक कलस जिसा ।। पयोधर जुग तिसा हा! मनमोहनि वेलि ||१|| चतुर सुजाण रे सीता नारि, महुल पधारो रे सी०। विरह निवारो रे सी०। निसि सूतांनींद नावई, दिवसई अन्न न भावई । तुं मुझ जोवन प्राण ॥च० भा०। केसरि कटि लंकाली कामिनी, वचन सुधारस रेलि। च०। अपछर साक्षात एह, प्रीतम सुं सुसनेह ।। च० गुण ताहरा चीतारु केता, हालति चालति ढेलि ॥२॥ च० प्रियभाषिणी प्रीतम गुणरागिणी, सुघड़ घणुं सुविनीत । च० नाटक गीत विनोद सहू मुम, तुझविण नावइ चीत ॥३॥ च० सयने रंभा विलासी, गृहकाम काज दासी, माता अविहड़ नेह । मंत्रिवी बुद्धि निधान । धरित्री क्षमा निधान, सकल कला गुण गेह ॥४॥ च० गुण ताहरा'चीतारु केता, तुम सम नहिं को संसारि । च० हा हुं हिव कहउ कदि देखिसि, सीता मुख सुखकार ॥५॥ च० अस्त्रीरतन किहां रहइ माहरइ, हा हा हुं पुण्यहीन । च० तुझ विण सूनो राज अम्हारो, वचन कहइ मुख दीन ॥६॥ च०