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________________ ( १७० ) तिहा जंत्र पुरुष खलीजता, मोहीता चित्राम । मरकत मणि थामे करी, रंधीता ठाम ठाम ।। ५ ।। देखा एक फटिक धरइ, तरुणी सुंदर देह। दिस भूला पूछइ किहां, शातिनाथ नो गेह।। ६ ।। ते अतर पाछउ न घइ, माली कुमर करेण । तितरई देखी लेपमय, लाज्या परस्परेण ।। ७ ।। आगई जाता एकना, दीठो देतो साद। पूछयो तिण देखाडियो, शांतिनाथ प्रासाद ॥८॥ सेना वाहिर मुंकिनइ, कुमर जे अंगद नाम । देहरा माहे पइसि नइ, कीधो जिन परणाम ॥६॥ रावणनइं निभ्रांछि नइ, दीघउ सवल उलंभ। रे सीता नइ अपहरी, ए स्यठ मांड्यो दभ ।। १० ।। जउ तुं त्रिभुवन नाथ नउ, आगइ रह्यो न हुंत । तउरे अधम करंत हुँ, यम पणि ते न करंत ॥ ११ ॥ इम अनेक निभ्रंछना, कीधी तेण कुमार। वांधी पाछे बाहियां, अंतेउरी उदार ।। १२ ।। आभ्रण ऊतारी लीया, वस्त्र लीया ऊतारि । वांधी चोटी सु सहू, कामिनी करई पोकार ।। १३ ।।। रे पापी तई छल करी, अपहरी सीता नारी। हुँ तुझ नारी देखता, ले जाउ छु वारि ॥ १४ ॥ जर तुझ माहे सकति छइ, तर तुं आडउ आवि। केस झालि मंदोदरी, निसर्यउ इम बोलावि ।। १५ ।।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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