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________________ ( १६८ ) सातिनो देव हरावीयो, नासि गयो ततकालोजी । वानर वलि गढ भांजिवा, ढ़का करइ ढक चालोजी ।। ढक चाल वानर तणो, देवता दोइ आविया। पूर्णभद्रनई मांणिभद्र नामइ, रावण दिस ते धाविया ।। वानर ऊठ्या वेटिकारे वामाणि भइ तब बोलीयो । रे सुणो वानर बात माहरी सातिनउ देव हरावीयो ।।२४|| रांवण ध्यान धरम धरी, बइठउ देहरा माहोजी।। इन्द्र साक्षात आवइ इहाँ, ते पणि न सकइ साहोजी ।। कोइ साहि न सकइ कदे तेहनइ, खोभावइ पणि को नही वानरे रावण पासि जाता, मंधि नई राख्या सही ।। वलि जुद्ध करतां देवते पिण, गया नासी डर करी। पणि पाथरे वानर पछाड्या, रावण ध्यान धरम धरी ।।२।। देव भणइ राघव भणी, दिइ ओलंभउ एहोजी। शांति जिणेसर देहरई, रावण बइठउ तेहोजी ।। वइठउ दसानन देहरा मई, नगर केम विधंसोयो। दसरथ तणा अंगज कहीजउ, न्याय धरम रहीजोयो ।। प्रज पीड करतां वानरा नइ, तुम्हें राखो जग धणी । लखमण कहइ सुणि देवता तुं, देव कहइ राघव भणी ।।२६।। न्याय धरम माहि जे रहइ, तेहनउ कीजइ पक्षोजी । तुं विपरीत पणो करइं, ते नहि जुगत प्रतक्षोजी ।। ते नही जुगत प्रतक्ष तुं हिव, रहि मध्यस्थ पणइ सदा । महाभाग कोप तुं मुंकि मनसुं, वात मुझ सांभलि मुदा ।।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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