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________________ [ १७ ] राजस्थानी भाषा की सर्वाधिक सेवा चारणों और जैन यतियों ने की है। इसके पश्चात् ब्राह्मण आदि वैदिक विद्वानों का स्थान आता है। हिन्दी भाषा में भी राजस्थान में रामचरित्र सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ रचे गये है। राजस्थानी भाषा के रामचरित्र ग्रन्थों का आधार वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण और जैन रामायण है। तुलसीदास की रामायण से भी उन्हें प्रेरणा अवश्य मिली होगी, पर उन रचनाओ में उसका उल्लेख नहीं पाया जाता है। राजस्थान में सन्त कवियो आदि द्वारा जो हिन्दी में रामचरित्र लिखे गए है उन पर तुलसी रामायण का प्रभाव अधिक होना सम्भव है। राजस्थान में गत कई शताब्दियों से रामभक्ति, कृष्ण भक्ति, शैव उपासना और शक्ति साधना का प्रचार कभी कहीं अधिक, कहीं न्यून रूप में चलता रहा है। इसमें राज्याश्रय का भी प्रधान हाथ रहा है। जब जहां के राजाओं ने जिस उपासना को अपनाया व बल दिया तो वहीं की प्रजा में भी उसने जोर पकड़ लिया, क्योंकि यथा राजा तथा प्रजा उक्ति के अनुसार खास तौर से राज्याश्रित हजारों व्यक्ति तो राजाओं की प्रसन्नता पर ही आश्रित थे। अतः राजस्थान में राजाओं मे रामभक्त अधिक नहीं हुए पर कई सन्त सम्प्रदायों के ही कारण रामभक्ति का प्रचार हो सका है। रामभक्ति का प्रचारभक्तों एवं संतों के द्वारा ही अधिक हुआ और सन्तों का प्रचार कार्य साधारण जनता मे ही अधिक रहा। इसलिए राजाओं में रामभक्त विशेष उल्लेखनीय जानने में नहीं आए। शैव और शाक्त ये राजस्थान के प्राचीन और मान्य सम्प्रदाय है । क्षत्रिय लोक शक्ति के उपासक तो होते ही है। योग माया करणीजी की
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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