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________________ [ १५ ] में राम का अपर नाम "पउम" या पद्म पाया जाता है और यह काव्य उनके सम्बन्धी होने से ही उसका नाम 'पउम चरियं' है। इसी प्रकार अपभ्रंश का उपलब्ध पहला काव्य भी महाकवि स्वयंभू का 'पठमचरिउ' है। कन्नड़ आदि अन्य भारतीय भाषाओं में भी रामकथा की प्रधानता मिलती है। तामिल, तेलुगु, मलयालम, सिंहली कश्मीरी, बंगाली, हिन्दी, उड़िया, मराठी, राजस्थानी, गुजराती, आसामी, के अतिरिक्त विदेश-तिब्बत, खोतान, हिन्देशिया, हिन्दचीन, स्याम, ब्रह्मदेश आदि देशों की भापाओं में रामकथा पाई जाती है। धर्म सम्प्रदाओं को ले तो हिन्दू धर्म में तो इसकी प्रधानता है ही पर जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में भी रामकथा पाई जाती है। जैनों में तो रामचरित मानस सम्बन्धी पचासों ग्रंथ है। हिन्दू धर्म सम्प्रदायों मे तो शैव एवं शाक्त आदि सम्प्रदायों का प्रभाव रामकथा पर पड़ा है। राम कथा की इतनी व्यापकता का कारण उसकी आदर्श प्रेरणात्मकता है। देश विदेश में स्थान स्थान पर प्रचारित हो जाने से इस कथा के अनेक रूप प्रचलित हो गए और प्राचीन कथा के साथ बहुत सी नई वातें जुड़ती गई। बौद्ध-दशरथ जातक आदि में वर्णित राम कथा, जैन परम्परा की राम कथा आदि से हिन्दू धर्म में प्रचलित राम कथा का तुलनात्मक अध्ययन करने से बहुत से नए तथ्य प्रकाश में आते हैं। इन सब बातों की छान-चीन सन् १९५० में भारतीय हिन्दी परिपद, प्रयाग से प्रकाशित रेवरेन्ड फादर कामिल वुल्के लिखित रामकथा (उत्पत्ति और विकाश) में भली भांति की जा चुकी है। सुयोग्य लेखक ने प्रस्तुत शोध प्रबंध की तैयारी में बड़ा भारी श्रम किया है। अन्य शोध प्रवन्धों से इसकी तुलना करने पर, दूसरे
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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