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( १२६ ) ढाल बोजी
राग मारुणी ___ लंका लीजइगी, सुणि रावण लका लीजइगी । ओ आवत लखमण कउ लसकर,
ज्य घन उमटे श्रावण । ए गीतनी ढाल । सीता हरिखीजी, निज हीयडइ सीता हरिखीजी।
हनुमंत दीध रामना हाथनी, मुंद्रडी नयणे निरखीजी ॥१॥ सी० हलुयइ २ हनुमंत जाई, सीत प्रणाम करेई । मुद्री खोला माहे नाखी, आणंद अगि धरेई ॥ २ ॥ सी० मुंद्रडी देखि सीता मन हरषी, जाणि हुयो प्रिय सगम । अमृतकुंडमाहे जाणे नाही, विहस्यो तनु थयो संभ्रम ।। ३ ।। सी० रतन जडित रंगीलो ओढणा, सीता वगिस्य उत्तम । हनुमंतनइ वलि पूछइ हरपइ, कुशलखेम छइ प्रीतम ॥४॥ सी० कहइ हनुमंत संदेसो सगलो, राम कह्यो जे रंग भरि । सुणि सीता वलि अतिघणुं हरपी, देखि भणइ मंदोदरि ॥ ५॥ सी० सुंदरि आज तु किम हरपित थई, संतोषी मुझ प्रियुडइ । कोप करइ सीता कहइ का तु, फोकट फाटइ हियडइ ।। ६ ।। सी० हरपनो हेतु जाणि तुं ए मुझ, प्रियुनी कुशलि खेमी। इणि सापुरस मुद्रडी आणी, आणंद तेण करेमी ।। ७॥ सी० पूछउ सीता कहि तु कुण छइं, केहनो पुत्र तुं परकज। कहइ हुँ पवनंजय नो नंदन, अंजनामुंदरि अंगजु ।। ८॥ सी० हनुमंत माहरो नाम कहोजइ, सुग्रीवनउ हूं चाकर। सुग्रीव पणि रामनो चाकर, राम सहूनो ठाकुर ।। ६ ।। सी०