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________________ ( १२३ ) जे हरइ पारकी नारि निरलज निपट, अधम तेहनी किसी कहो बड़ाई। राम कहइ रे सुभट सुणहु विद्याधरा, देखि कुण हेलि करूं तेथि जाई ८ पारको स्त्री हरई को नही आज थी, एहवी वात करूं हुं प्रमाणु। लंकागढ़ लूटिनइ मारि पाधर करु , छेदि दस सोसनइ सीत आणु ।।8।। भणि जंबुवत साहिब सुणो वीनतो, चतुर विद्याधरी ए कुमारी। तुम्हतणी रागिणी आवि आगई खड़ी, आदरो वात मानो हमारी १० भोग संजोग तुम्हे एहसुं भोगवो, सीत वालन तणी बात मूको। अन्यथा दुक्ख भागी हुस्यो एहवा, मूढ़ नर पथिकनर जेमवूको ||१|| भणइ लखमण इम म कहि भुं जंबुवंत तु, उद्यमे जेण दालिद्र नासइ । गोह पन्नग भणी मारिनइ औषधी, वलइलीधो लोक एम भासई १२ जेम तिण औपधी वलय लीधो निपुण, तेम अम्हे मारि रिपु सात लेस्यां जपइ जंववंत मंत्रीस सुग्रीवनो, एह उप्पाय अम्हे कहेस्यां ॥ १३ ॥ एकदा रावणइ अनंतवीरज मुणी, पूछियो केहथी मुज्म मरणं । ते कह्यो कोडिसिल जेह ऊपाडिस्यई, तेहथी मरण डर चित्त धरणं १४ भणई लखमण भुजादंड आफालतो, देखि तु माहरो वल प्रचंडं । सिंधु देसइ गयो राम सुग्रीव सुं, खेचरे भूचरे करि घमंडं ॥१।। सु० कोडिसिल नाम एकासिला तेथि छई, भरतखंडवासि देवी निवासां । एक जोयण उछेधांगुले ऊंचपणि, पिहूल पणि तेतली सुप्रकासा ।।१६।। शांति गणधर चक्रायुध मुनि परिवरयो, सिद्धि पामी तिहासुद्ध भावई बत्तीस पाटांगुली तेहथी तिहां वली, मुनि तणी कोडि बहु मुगतिपावई कुंथु तीरथ अठावीस जुगसीम वलि, सिद्धिगइ साध संख्यात कोडी। अरतणा साधवलि पाट चउवीस लगि, वारकोडि मुगतिगया कमंत्रोडी
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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