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________________ ( ११५ ) पणि अम्ह कुसल किहां थकी, ते सुणिज्यो सुविचार। तुम्हे समरथ साहिब वड़ा, करो अम्हनइ उपगार ॥६॥ किंपिकध परवत उपरई, किंक्विध नगर सदीव । आदीतरथना पुत्र वे, वालि अनइ सुग्रीव ।। ७॥ वाली बलसाली सवल, मोटी जेहनी माम । रांवण खवि खीजी रह्यो, पणि नकरइ परणाम ।। ८ ॥ वयरागई संयम लीयो, सुग्रीव पालई राज। नाम सुतारा तेहनई, पटराणी सुभ काज ॥8॥ ।। सर्वगाथा १६५ ॥ ढाल ७ उल्लालानी, अथवा भरत थयोऋपि राया रे। अथवा “जगि छइ घणाइघणेरा, तीरथ भला भलेरा” एतवननी ढाल ।। इण अवसरि एक कोई, कपटइ सुग्रीव होई।। विद्याधर तारा पासे, आव्यो परम उल्हासे ॥१॥ तारा जाण्यो ए अन्न, ते नहीं लक्षण तन्न । नासीनइ गइ दूरि, जई कहइ मंत्रि हरि ॥२॥ ते विद्याधर दुट्ठ, सिंहासन उपविट्ठ । तेहवइ बालिनो भाई, आव्यो महलमइ धाई ॥३॥ दीठो आप सरूप, बीजो सुग्रीव भूप । तुरत थयो लथपथ, नाख्यो दे गलहत्थ ।। ४ ।। बीजइ कीयो सिंहनाद, लागो माहो माहि वाद । मुंहते विहुनइ धिक्कात्या, जुद्ध करता ते वाख्या ॥५॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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