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________________ ( ११२ ) जेहवी आगिनो माल, विसकन्दली विकराल । वाघणि मुजंगो होइ, परनारि कह्इ सहु कोइ ॥ ४५ ॥ ए नारि रावण जाणि, अनरथ दुखनी खांणि । का कुलनई चईतुं क्लक, का खोयई अपणी लंक ।। ४६ ।। कां जस गमाङ कुराहि, का पडदुरगति मांहि । प नारि पाछी मॅकि, मसलति थकी म चूकि ॥४७॥ रावण कहई ए भूमि, मोहरी छइ करि फमि । ते माहे अपनी साइ, परकी किम कहवाइ ॥४८॥ नम गति कहतो पाप, चड्यो महल उपरि आप । वनारि पुष्प विमाणि, ले गयो सीताप्रांणि || ४६ ।। नतुरंग सेना साथि, रावणउ लीधी आथि । बाजिन बाजरं तर, अति सबल प्रबल पडूर ॥ ५० ॥ गयउ पुष्पगिरिनगि , उद्यान तिहा अति चंग। नाग्लन नारिंग, बहु फणस चपक चंग।। ५१ ।। बहु नागनई पुन्नाग, जिहाँ घणा सरला लाग। आलोग निलक उतंग, सहकार वृन्न सुरंग ।। ५२ ।। कंगण तणा मोपान, जिहा जल अमृत समपान । एडवी वावडी नीर, सीता मुकी दिलगीर ॥ ५३॥ राया तगर आदेन, सुन्दर वणावी वेम। योगा रवाप रसाल, चामली मादल ताल || ४ || ना ले नाटय माज, नई भावी सुग्व काशि। गीता सागर सरत गान, आलापताननई मान vil
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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