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________________ ( ६१ ) ढाल २ ढाल :-सुणउरे भविक उपधान वृहा विण, किम सूझइ नवकार जी । अथवा-जिनवर सु मेरो मन लीनो, ए देसी । तिण अवसरि लंकागढ़ केरो, रावण राज करेइजी । समुद्रतणी पाखतियां खाई, दससिर नाम धरेइजी ।।१।। ति० तेहतणी उतपति तुम्हें सुणिज्यो मूलथकी चिरकालजी । वैताढ्य परवत उपरि पुर इक, रथनेउर चक्रवालजी ॥२॥ ति० । मेघवाहन विद्याधर राजा, इन्द्र सुं वयर छइ जासजी । अजितनाथनई सरणइं पश्ठो, इन्द्र तणो पड्यो त्रास जी ॥३॥ तिक चरणकमल वादीनइ बइठो, भगति करई करजोडि जी। मेघवाहन राजा इम वीनवई, भव संकट थी छोड़ि जी ॥४॥ ति० तीर्थ करनी भगति देखीनई, रंज्यो राक्षस इंदजी। मेघवाहन राजानइ कहइ इम, सुणि मेटुं तुम दंद जी ॥२॥ ति० लवण समुद्र मझार त्रिकूटगिरि, उपरि राक्षसदीप जी। सर्गपुरी सरिपी छइ नगरी, तिहां लका जिहां जीप जी ॥६॥ ति० तिहां जा तुं करि राज नरेसर, मुझ आगन्यां छई तुझजी। तिहां रहतां थकां कोउ नहि थायई, अवर उपद्रव तुम जी ॥णा ति० वलि पृथ्वीना विवर माहे छइ, आठ जोयण उचानिजी। पातालपुर पई दंडगिरि हेठइ, दुप्रवेस शुभ शांतिजी ।। ८ । ति०॥ ते पणि नगरी मंइ तुम दीधी, जा तुं करि आणंदजी । मेघवाहण लंका जइ बइठो, राज करई निरदंदजी ॥६। ति०॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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