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________________ ( ७४ ) तिण अवसरि नटुइ नृप पूछयो, भरत विरोध विचार । मानि हिवई तू आण भरत की, मुँकि मूरिख अहंकार ॥१० त०॥ अम्ह वचने तु मानि भरत नइ, ए तुम सरण अधार। लागि-लागि रे भरत ने चरणे, नहि तरि गयो अतवार ॥११ त०॥ कोप करी राजा ऊपाड्यो, मारण खडग प्रहार। नटुई मिल चोटी थी झाल्यो, हूयो हाहाकार ॥१२ ता खडग उपाडि कहइ इम नटुई, मानि के नाखिस्यां मारि । लखमण चोटी झालि लेई गयो, राम तणइ दरवारि ॥१३ त०] राम सीता हाथी वइसी नई, गया जिनराज विहार। सीता कहई मुकि २ गरीवनइ, ए नहिं तुझ आचार ।।१४ तक। सीता वचने मुंफ्यो अतिवीरिज, वरत्या जय जय कार । समयसुंदर कहई ढाल ए पांचमी, नाटकनो अधिकार ।।१५ त०ll [ सर्वगाथा ११३] दूहा २२ कहइ लखमण तुं भरथनो, साचा सेवक थाइ। अतिवीरिज वयराग धरि, राम समीपइ जाइ ॥१॥ कहइ इण राजई मुम सत्यो, ए अपमाननो ठाम । हुँसंसार थी ऊभग्यो, संयम लेइसि सामि ||२|| राम कहइ ते दोहिलो, संयम खडगनी धार । हिवडा भोगवि राज तु, हुए आगइ अणगार ।।३।। राजा वयरागइ चड्यो, पुत्र नइ दोधो राज। गुरु समीप दीक्षा ग्रही, सात्या आतम काज ||४||
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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