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________________ [६] चन्द्रनखा विलाप, रावण की मृत्यु पर मन्दोदरी आदि रानियो का विलाप बहुत ही करुण बन गया। लक्ष्मण की रानियों का यह रुला देनेवाला विलाप घनीभूत वेदना का,एक अतिक्रमण है। पोकार करता हीयो फाटई, हार बोड़इ आपणा आभरण देह थकी उतारइ, मरई आँसू अति घणा और तब इस तरह की अश्रुधारा में कवि निर्वेद की एक धारा और मिला देता है। शान्त रस-लक्ष्मण पर चक्र व्यर्थ जाने पर रावण आत्मग्लानि के साथ संसार की निस्सारता का समर्थन करने लगता है। 'धिग मुम विद्या तेज प्रतापा रावण इण परि करइ पछतापा हा हा ए ससार असारा, बहुविध दुखु तणा भण्डारा हा हा राज रमणी पणि चचल, जौवन उलो जाय नदी जल सोलइ रोग समाकुल देहा, कारमा कुटुम्ब सम्बन्ध सनेहा अलंकार योजना-अलंकारों की ओर कवि का आग्रह नहीं हुआ करता, कविवर समयसुन्दरका भी नहीं है । भाषा और शब्दावली ही ऐसी है कि जब कवि भाव विभोर हो उठता है तो अनुप्रास तथा अलंकार स्वयं खिचे चले जाते हैं। अस्तु, यह अलंकरण बिलकुल स्वाभाविक हुआ है देखिये
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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