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________________ हुं पापी हुं दुरगति गामी, हुं निरदय हुं मूढ रे । इम वयराग धरी राय चल्यऊ, आगइ तुरग आरूढ़ रे ||८ || एहवइ साध दीठउ सिल ऊपरि, करतठ आतापन एक रे। करि प्रणाम राजा इम पूछइ, जाग्यउ परम विवेक रे॥६॥रू०॥ स्यु करइ छइ उजाडिमइ वइठउ, कां सहई तावड सीत रे। का सहइं भूख त्रिषा तुंसवली, वाततोरी विपरीत रे ॥१०॥रू०।। साध कहतुं साभलि राजा, आतम हित करूं एह रे। तप संयम करी परलोक साधू, छीजती न गणु देह रे ॥११॥रूoll जीव मारीनई जे मांस खायई, मद्य पीयई वली जेह रे। नर भव लाधउ निफल गमाडई, दुरगति जायइ तेहरे ।।१२।। रू०॥ मांस भोजन ते अहित कहीजइ, ताव मांहे घी पान रे। तपसंयम आतम हित कहीयई, मांदानइ मुग धान रे ॥१३॥ रू०॥ साध वचनइ राजा प्रतिबूधउ, पभणईवे करजोडि रे। साधजी धरम सुणावि तुं सूधउ, पाप करम थी छोड़ि रे ॥१४|| रू०॥ त्रीजा खंड तणी ढाल पहिली, पूरी थई ए जाणि रे। साधु संसार समुद्र थी तारई, समयसुन्दरनी वाणि रे ।।१।। रू० ॥ [सर्वगाथा २८] दहा ४ देव तउ श्रीवीतराग ते, गुरु सुसाध भगवंत । धर्म ते केवलि भाखीयउ, समकित एम कहंत ॥१॥ एक तीथंकर देवता, वीजा साध प्रवुद्ध । त्रीजानइ प्रणमइ नहीं, तेहनउ समकित सुद्ध ॥२॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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