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________________ भापा-विचार-प्रस्तुत ग्रन्थ की भाषा शुद्ध मध्य युगीन राजस्थानी है। कवि की भ्रमणशील प्रवृत्ति के कारण बीच-बीच में गुजराती शब्दों का बहुल प्रयोग एवं सिंधी, उर्दू, फारमी आदि के शब्द भी स्वभावतः आ गये हैं चलती बोलचाल की भाषा होने के कारण ग्रन्थ अधिक सरस एवं मधुर हो गया है। शब्दों में लय का उन्मेष है, कर्ण कटुता नहीं । उकारान्त एवं इकारान्त शब्दों का बहुल प्रयोग । है यथा-लीघउ, पामउ, काजरउ, साथ, चालइ, सोहर, माथड आदि। विभक्तियां भी लुप्त ही रही है, यथा- लगि, परि. घरे आदि। ___फारसी आदि के विदेशी शब्द भी आ गये ई यथा-फौज, बलिम, दिलगीर। सम्भवतः कवि के सिन्ध प्रवास का यह प्रभाव है। वर्णन के अनुकूल शब्दावली का निर्माण कवि की अपनी विशेपता है। अनुकरण मूलक शब्द द्वारा भयानकता और भी बढ गई है 'पड़तइ मुवन धरा पिण काँपी, सेपनाग सलसलिया लंका लोक सवल खलभलिया, उदधि नीर ऊछलिया। शैली-ऋवि कवि की शैली सरल है। कथा की दीर्घता के कारण सरल, सीधी सादी पद्धति में कवि कथा को कहता चला गया है। हाँ, जहां उसे वर्णन का थोड़ा भी अवकाश मिला है, वहीं बहुत लाघव से कुछेक शब्दों में वर्णन द्वारा चित्र खड़ा किया गया है जो अपने आप में पूर्ण है, आकर्पक है। ___ कहावत एवं मुहावरो के प्रयोग से शैली और भी आकर्षक बन गई है। सीता के प्रति लोकापवाद के चक्रवात के मूल मे कवि ने
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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