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________________ तेहवइ ते देवी चवी, वेगवती नउ जीव । वैदेही कुखइ ऊपनी, भोगवि सुक्ख अतीव ॥६॥ अन्य जीव परिण ऊपनउ, ते सेती तिण ठामि । राणी जायउ बेलडउ, पुत्र पुत्री अभिराम ।।७।। एकइ देवइ अपहर्यउ, जातमात्र ततकाल । पूरव भव ना वयर थी, ते बालक सुकमाल ||८|| श्रेणिक राजाइ पूछियउ, कुण वयर तिण साथि । श्री गौतम गणधर कहइ, सामलि तु नरनाथ ।।६।। {सर्वगाथा ५७ ] ३ ढाल त्रीजी सोरठ देस सोहामउ, साहेलडी ए देवां तगड निवास ॥ गय सुकमालि ना. चउढालिया नो॥ अथवा ।। सौभागी सुन्दर तुझ बिन घड़ी य न जाय ए देशी चक्रपुरइ राजा हुतउ, पूरव भव, चक्कवइ रिद्धि पभूय । मयणसुदरी कुखि ऊपनी, पू०।। अति सुन्दरी तसु धूय ।। टक तसु धूय रूपइ देवकुवरि, नेसालइ भरिणवा गई अति चतुर चउसठि कला सीखी, जोवन भर जुवती थई ।। प्रोहित नउ पगि पुत्र तिहाँ करिण, मधुपिंगल नामइ भगइ गुणगोष्ठि करता नजरि वरतां, लपटाणा प्रेमइ घरगइ ॥१॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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