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________________ [ २ ] उसने जैसे साध का कलंक वापस उतारा, वैसे ही सीता अग्नि परीक्षा द्वारा निष्कलंक घोपित हुई। इस प्रकार सकलभूषण केवली ने शुभ व अशुभ कर्मों के फल वतलाते हुए धर्मोपदेश देकर पापस्थानकों से भव्य जीवो को वचने की प्रेरणा दी। केवली भगवान की देशना सुन कर लव कुश और कृतान्तमुख ने दीक्षा ले ली। राम, लक्ष्मण, विभीषणादि ने सीता को वन्दन करके अपराधो की क्षमा याचना की शान्त चित्त से राज भोगने लगे। साध्वी सीता ने निर्मल और निरतिचार चारित्र पालन कर अनशन आराधना पूर्वक आयुष्य पूर्ण करके वारहवें देवलोक में इन्द्र रूप में अवतार लिया, जहाँ २२ सागरोपम की आयुस्थिति है। राम-लक्ष्मण चिरकाल तक प्रेम पूर्वक राज्य सम्पदा भोगते हुए काल निर्गमन करने लगे। राम लक्ष्मण का अनन्य प्रेम, इन्द्र द्वारा परीक्षा एक दिन इन्द्र ने देवसभा मे मोहनीय-कमे के सम्बन्ध मे बात चलने पर उसे बड़ा दुद्धर्ष बतलाया और महापुरुष भी उसके जबरदस्त वशीभूत होते है इसके उदाहरण स्वरूप कहा कि राम लक्ष्मण का प्रेम इतना गाढा है कि एक दूसरे के विरह मे अपना प्राण त्याग कर सकते है। इन्द्र के वचनो की परीक्षा करने के लिए कौतुहल पूर्वक दो देव अयोध्या मे आये और राम को देवमाया से मृतक दिखा कर अन्तःपुर मे हाहाकार मचा दिया। लक्ष्मण ने जब राम का मरण जाना तो उसने तत्काल प्राण त्याग दिया। लक्ष्मण को मरा देखकर देवों के मन मे बड़ा भारी पश्चाताप हुआ, पर गये हुए प्राण वापस
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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