SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ६६ ] प्रवर्तिनी को सौंप दिया और वह निर्मल चारित्र का पालन करने लगी। राम को लक्ष्मण ने समझा-बुझा कर शान्त किया। राम सपरिवार सकलभूषण केवली को वन्दनार्थ गजारूढ़ होकर आये, साध्वी सीता भी वहाँ बैठी हुई थी। केवली भगवान ने राग, द्वष का स्वरूप समझाते हुए धर्मदेशना दी। राजा विभीषण ने केवली भगवान से सीता के प्रसंग से राम लक्ष्मण और रावण के साथ संग्राम आदि होने का परमार्थिक कारण पूछा। केवली भगवान ने पूर्व जन्म की कथा इस प्रकार बतलाई। सीता का पूर्वभव कथा प्रसंग क्षेमपुरी नगरी मे व्यापारी नयदत्त निवास करता था जिसकी भार्या सुनन्दा की कुक्षी से धनदत्त और वसुदत्त नामक दो पुत्र थे। उसी नगर मे सागरदत्त नामक एक व्यापारी था जिसकी स्त्री रत्नाभा के गुणवती नामक लावण्यवती पुत्री थी। पिता ने उसकी सगाई वसुदत्त के साथ व माता ने द्रव्य लोभ से श्रीकान्त नामक उसी नगरी के एक व्यापारी से कर दी । ब्राह्मण मित्र से सम्वाद पाकर वसुदत्त ने श्रीकान्त को तलवार के घाट उतार दिया। श्रीकान्त ने मरते-मरते वसुदत्त के पेट में छुरा भोक दिया, दोनों मर के जंगली हाथी हुए और पूर्व जन्म के वैर से परस्पर लड़ मरे । फिर महिप, वृषभ, बानर, द्वीपी मृग आदि भव किये और क्रोधवश जलचर, स्थलचर आदि जीव योनियों में भटकने लगे। भाई के वियोग से दुःखी धनदत्त ने भ्रमण करते हुए साधु के समीप धर्मश्रवण कर श्रावक व्रत ले लिए और आयु पूर्ण होने पर वह स्वर्ग गया। वहां से महापुर में पद्मरुचि नामक सेठ के रूपमें उत्पन्न
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy