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________________ [ ६७ .] सीता ने राम के वचनानुसार अग्निपरीक्षा द्वारा धीज करना स्वीकार ‘किया। राम ने एक सौ हाथ दीर्घ वापी खुदवा कर उसे अगर चन्दन के काष्ट से भरवा दी और उसके चारों ओर से अग्नि प्रज्वलित कर दी गयी। सीता धीज करने के लिए प्रस्तुत हुई । सारे नगर के लोग मिलकर हाहाकार करते हुये राम के इस अन्याय की निन्दा करने लगे। निमित्त-प्रभावक सिद्धार्थ मुनि ने आकर कहा-शील गुणादि से सती सीता एकान्त पवित्र है। चाहे मेरु पर्वत पाताल में चला जाय, समुद्र सूख जाय तो भी सीता मे कोई लांछन नहीं! यदि मैं मिथ्या कहता हूँ तो मुझ प्रतिदिन पंचमेरु की चैत्य-वन्दना करके पारणा करनेवाले का पुण्य निष्फल हो। मैं निमित्त के बल पर कहता हूं कि सीता के शील के प्रभाव से तुरन्त अग्नि जल रूप मे परिणत हो जायगी। सकलभूपण साधु के केवलज्ञान उत्पन्न होने पर इन्द्र वन्दनार्थ आया और उसने सीता की अग्निपरीक्षा की बात सुनकर हरिणेगमेपी देव को आज्ञा दी कि निर्मल शोलालंकारधारिणी सती सीता को अग्नि परीक्षा में सहाय करना | इन्द्र की आज्ञा से हरिणेगमेषी देव सीता की सेवा में आकर उपस्थित हो गया। राम के सेवकों ने वापी में अग्नि पूर्णतया प्रज्वलित होने की खवर दी। राम अग्नि ज्वाला को देखकर बड़े चिन्तित हुए और नाना विकल्प करने लगे। अग्नि की प्रचण्ड ज्वाला का प्रकाश एकएक कोश तक फैल गया और धग-धगाट शब्द होने लगा, धूम्र घटा आसमान में छा गई । लोगों के हाहाकार के बीच सीता ने स्नानादि
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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