SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । ६२ । उन्हें आहार पानी से प्रतिलाभा। क्षुल्लक ने पुत्रों का परिचय प्राप्त कर भावी सुख की भविष्यवाणी की। दोनों कुमार बड़े होकर वहतर कलाओं मे प्रवीण, शूरवीर और साहसी हुए। राजा बजघ ने अनंगलवण को शशिचूलादि अपनो वत्तीस कन्याएँ दी एवं साथ ही मदनांकुश का पाणिग्रहण करने के लिये पृथिवीपुर के पृथु राजा के पास उसकी पुत्री कनकमाला की मांग की। राजा पृथु ने कुपित होकर अज्ञात कुलशील को अपनी पुत्री देना अस्वीकार करते हुए दूत को अपमानित करके निकाल दिया। वनजंघ ने पृथु के देश मे लूटपाट व उत्पात मचा कर उसे युद्ध के लिये वाध्य किया। वनजंघ के पुत्र बुद्ध के निमित्त तैयार हुए तो लवण और अंकुश भी सीता को समझावुझा कर युद्ध के लिये साथ हो गये। ढाई दिन पर्यन्त कूच करते हुए पृथु से जा भिड़े। दोनो ओर की सेनाओं में तुमुल युद्ध हुआ। लब और अंकुश दोनो शेर की तरह टूट पड़े और अल्पकाल में शत्रु सेना को परास्त कर दिया-पृथु राजा ने कुमारों के प्रौढ़ पराक्रम से ही उनके कुलवंश की उच्चता का परिचय पाकर क्षमा याचना की। नारद द्वारा लव-कुश का वास्तविक परिचय तथा लव-कुश की अयोध्या जिज्ञासा इसी अवसर पर नारद मुनि आये और उनके द्वारा सीताराम के नन्दन दोनो कुमारों का परिचय प्राप्त कर सब लोग प्रसन्न हुए। लव, अंकुश दोनों ने नारद से पूछा कि अयोध्या यहां से कितनी दूर है ? नारद ने कहा-एक सौ योजन की दूरी पर अयोध्या है जहाँ तुम्हारे पिता राम और चाचा लक्ष्मण का राज्य है। अपनी मा को
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy