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________________ [६] को ले जाकर डंडाकार अटवी में छोड़ आओ। उसने सीता को रथ मे बैठा कर सत्वर अटवी का मार्ग लिया। रारते मैं नाना अपशकुनो के होते हुए भी ग्राम, नगर, पर्वतों को उल्लंघन कर सारथी ने सीता; को डंडाकार अटवी में लाकर पहुंचा दिया। वहीं नाना प्रकार के फल फूलों के वृक्ष और घना जंगल था और सिंघ व्याघ्रादि हिंस्र पशुप्रचुरता से निवास करते थे। सीता ने सारथी से पूछा-राम आदि सव परिवार कहां रह गया व मुझे अकेली को यहाँ कैसे लाये ? सारथी ने कहा-चिन्ता न करें माताजी सव लोग पीछे आ रहे है। नदी पार होने के अनन्तर सारथी ने आँखो में आँसू लाकर सीता को रथ से उतार कर राम के कुपित होकर त्यागने का सन्देश सुना दिया। सीता बज्राहत की भांति सुनते ही मूच्छित हो गई। थोड़ी देर में सचेत होकर कहा-मुझे अयोध्या ले जाकर सत्य प्रमाणित होने का अवसर दो। सारथी ने दुखित होकर अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए सीता को रोते कलपते छोड़कर अयोध्या की ओर रथ को घुमा लिया। शोक संतप्त सीता की वज्रजंघ से भेट और सकुशल आवास प्राप्ति सीता अकेली व असहाय अवस्था मे भयानक अटवी मे वंठी हुई नाना विलाप करने लगी। कभी वह पति, देवर, पीहर, ससुराल. वालो को उपालंभ देती और कभी अपने पूर्वकृत पापो को दोष देती हुई पश्चाताप करने लगती। अन्त मे वह वैराग्य परिणामों से नवकार मंत्र स्मरण करती हुई एक स्थान पर बैठ गई।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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