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________________ [ ५६ ] उसके राजा होनेसे में स्वतःही राजा हो गया क्योंकि वह मेरा विनीत व आनाकारी है। तदनन्तर विद्याधरों ने राम लक्ष्मण का अभिषेक किया। राम बलदेव व लक्ष्मण वासुदेव हुए। सीता और विशल्या पटरानियां हुई। राम ने विभीषण को लंका का राज्य, सुग्रीव को किष्किन्ध्या, हनुमान को श्रीपुर, चन्द्रोदर के पुत्र को पाताल लंका, रत्नजटी को गीतनगर, भामण्डल को दक्षिण वैताव्य का राज्य देकर सन्तुष्ट किया। अर्द्ध भरत को साधकर राम लक्ष्मण सुखपूर्वक अयोध्या का राज्य करने लगे। सीता कलंक उपक्रम व सीता की सौतों का विद्वेष एक दिन सीता ने स्वप्न मे सिंह को आसमान से उतर के अपने मुख में प्रविष्ट होते देखा एवं अपने को विमान से गिरकर पृथ्वी पर पड़ते देखा। उसने तुरंत राम से अपने स्वप्न की बात कही। राम ने उसके पुत्र युग्म होने का फलादेश बतलाते हुए विमान से गिरने का फल कुछ अशुभ प्रतीत होता है, बतलाया। सीता ने सोचा, न मालूम मैंने पूर्व जन्म में कैसे पाप किये थे जिनका अभी तक अन्त नहीं आया। तदनन्तर वसन्त ऋतु आने से सब लोग फाग खेलने के लिए प्रस्तुत हुए। राम, सीता और लक्ष्मण, विशल्या को फाग खेलते देख प्रभावती आदि सीता की सपनिया सौतिया डाह से जलने लगी। उन्होंने परस्पर विमर्श करके सीता को राम के मन से उतार देने का पड़यंत्र रचा और सरल स्वभावी सीता को बुलाकर पूछा कि-रावण का कैसा रूप था ? तुमने पद्मवाड़ी में बैठे अवश्य ही उसे देखा होगा? सीता ने कहा-मैं तो नीचा मुख किये अश्रुपात करती रहती थी, मैंने उसके सामने
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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