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________________ [ ४८ । रावण की मन्त्रणा और शक्ति संचय का प्रयत्न रावण ने जब लक्ष्मण के जीवित होने का सुना तो मृगांक मन्त्री को बुला कर मंत्रणा की। मन्त्री ने राम लक्ष्मण के प्रताप और बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुए सीता को लोटा कर सन्धि कर लेने की राय । दी। रावण ने सीता को लौटाने के अतिरिक्त राम से मेल करने की आशिक राय मान कर राम से कहलाया कि-सीता तो यहाँ रहेगी, आपको लंका के दो भाग दे दूंगा, मेरे पुत्र व भ्राता को मुक्तकर सन्धि कर लो! राम ने कहा मुझे सीता के सिवाय राज्यादि से कोई प्रयोजन नहीं, तुम्हारे पुत्रादि को छोड़ने को प्रस्तुत हूँ! दूत ने कहा-रावण की शक्ति के समक्ष राज्य और सीता दोनों गँवाओगे! दूत के वचनों से क्रुद्ध भामण्डल ने खड्ग उठाई तो लक्ष्मण ने दूत को अवध्य कह कर छुड़ा दिया। दूत अपमानित होकर रावण के पास गया और जाकर कहा कि राम जीते जी सीता को नहीं छोड़ेगा। रावण ने बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करके दुर्जेय राम को जीतने का निर्णय किया। रावणमन्दोदरी ने शान्तिनाथ जिनालय मे बड़े ठाठ से अष्टान्हिको महोत्सव प्रारम्भ किया। नगर मे सर्वत्र अमारि और शील व्रत पालन करने की आज्ञा देकर आयंबिल तप पूर्वक रावण जिनालय के कुट्टिम तल पर बैठ कर निश्चल ध्यान पूर्वक जाप करने लगा। वानर सेनाको जब रावण के विद्या सिद्ध करने की बात मालूम हुई तो इसके लिये उनमें चिन्ता च्याम हो गई। विभीषण ने राम से कहा-रावण को अभी कब्जे में करने का अच्छा अवसर है। नीति-निपुण राम ने कहा-युद्ध के बिना और फिर शान्तिनाथ जिनालय में स्थित होने से उसे मारना योग्य नहीं ! हां विद्या सिद्ध न हो, इसके लिये अन्य उपाय कर्त्तव्य है।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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