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________________ [ ४४ अपने घर जाने का कहते हुए कल्पान्त दुःख करने लगे। जाबवन्त विद्याधर ने कहा-आप महासत्वशील हैं, सूर्य कभी उद्य और अस्तकाल में अपना तेज नहीं छोड़ता, इस वजूघात को पृथ्वी की सांति सहन करें। लक्ष्मण अभी मरा नहीं है, यह तो शक्ति प्रहार की मूर्छा है, जिसे उपचार द्वारा रातोरात ठीक किया जा सकता है। यदि प्रातःकाल तक ठीक न हुआ तो यह शरीर सूर्य किरण लगते ही प्रातःकाल के बाद निष्प्राण हो जायेगा। राम ने धैर्यधारण किया, उनके आदेश से विद्याधरों ने विद्या-वल से सात प्राकार बनाकर सात सेनाओं से सुरक्षित किया। नल, नील, अतिबल, कुमुद, प्रचण्डसेन, सुग्रीव और भामंडल सातो द्वारों पर शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर लक्ष्मण की रक्षा के लिए तैनात हो गए और उधर कुम्भकरण, इन्द्रजित और मेघनाद वानर सेना मे कैद थे, जिनके लिए रावण को दुःख करते व लक्ष्मण के शक्ति द्वारा मूञ्छित होने की बातें सीता के कानों में पड़ी तो वह देवर के लिए करुण स्वर से आक्रन्दन करने लगी। उसे विलाप करते देख विद्याधरों ने धैर्य बँधाया और मंगल-कामना व आशीर्वाद देने के लिए प्रेरित किया। रामचन्द्रजी की सेना मे एक विद्याधरने आकर लक्ष्मण को सचेत करने का उपाय बतलाने के लिए मिलने की इच्छा प्रकट की। भामण्डल ने उसे राम से मिलाया उसने कहा लक्ष्मणोपचार आयोजन तथा विशल्या का कथा प्रसंग मैं सुरगीत नगर के राजा शशिमंडल-शशिप्रभा का पुत्र चन्द्रमण्डल हूं। एक वार गगन मंडल में भ्रमण करते हुए पूर्ववैरवश
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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