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________________ [ ४० ] सभी वीरों में प्रसन्नता छा गई। इतने मे ही भामंडल भी सदलचल आ पहुंचा, राम ने उसका वड़ा सत्कार किया। कुछ दिन हंमद्वीप में रहकर राम लक्ष्मण ने ससैन्य लंका की ओर प्रयाण किया। बीस योजन की परिधि वाले रणक्षेत्र में सेना के पड़ाव डाले गये। लंका युद्ध प्रसंग कुम्भकर्णादि सभी सामन्त अपनी-अपनी सेना के साथ रावण के पास गए। रावण के पास ४ हजार अक्षौहिणी सेना तथा एक हजार अक्षौहिणी वानरों की सेना थी। अक्षौहिणी सेना में २१८७० हाथी, रथ, १०६३५० पैदल, ६५६१० अश्वारोही होते थे। मेघनाद, इन्द्रजित गजारूढ़ थे। ज्योतिप्रभ विमान में राजा कुम्भकरण सुभटों के साथ एवं रावण पुष्पक विमान में बैठकर चला। भूकम्पादि अपशकुन होने पर भी रावण ने भवितव्यता वश उन्हें अमान्य कर दिया। राक्षस और वानर सेना के वीर परस्पर एक दूसरे पर टूट पड़े। राम की सेना में जयमित्र, हरिमित्र, सबल, सहावल, रथवर्द्धन, रथनेता, दृढरथ, सिंहरथ सूर, महासूर, सूरप्रवर, सूरकंत, सूरप्रभ, चन्द्राभ, चन्द्रानन, दमितारि, दुर्दन्त, देववल्लभ, मनवल्लभ, अतिवल, प्रीतिकर, काली, सुभकर, सुप्रसनचन्द्र, कलिंगचंद्र, लोल, विमल, गुणमाली, अंग्रतिघात, सुजात, अमितगति, भीम, महाभीम, भानु, कील, महाकील, विकल, तरंगगति विजय, सुसेन, रत्नजटी, मनहरण, विरोहिय, जलवाहन, वायुवेग, सुग्रीव, हनुमन्त, नल, नील, अंगद, अनल आदि सुभट थे। अनेक विद्याधरों के साथ विभीषण भी सन्नद्धवद्ध थे। रामचन्द्र स्वयं सब . से आगे थे। रणभेरों व वाजिनों तथा सेना के कोलाहल व सिंहनाद
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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