SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३६ ) और ७३१ गाथाओं में इसे सं० १७१६ चंदेरीपुर में बनाया। जैसा कि पहले कहा जा चुका है यह कवि की सर्व प्रथम रचना है, जो केवल १६ वर्ष की आयु में बनाई गई थी। इसकी प्रतियाँ बीकानेर के जिनचारित्रसूरि एव उपाध्याय जयचदजी आदि के सग्रह में है। (२) अमरसेन वयरसेन चौपई । स० १७२४, सरसा में इस राजस्थानी चरित्र काव्य की रचना हुई है। इसकी कई प्रतिया बीकानेर के ज्ञानभण्डारों मे है। (३) सुरसुन्दरी रास कवि ने इस रास में नवकार मंत्र और शील के महात्म्य संबन्धी अमरकुमार सुरसुन्दरी की कथा चार-खण्डो मे गु फित की है। प्रथम खण्ड मे आठ, द्वितीय मे ग्यारह तृतीय मे आठ, चतुर्थ में बारह ढालें हैं। कुल ६३२ गाथाएं है। श्लोक संख्या ६०० है। अन्य प्रति में गाथाओं की सख्या ६१६ भी बतलाई गई है। इस कथा का मूल आधार 'शीलतरगिणी' नामक ग्रन्थ का कवि ने उल्लेख किया है। स० १७३६ श्रावण सुदी १५ वेनातटपुर ( बिलाड़ा) में इसकी रचना हुई है। [४] परमात्म-प्रकाश हिन्दी टीका खण्डेलवाल रेखजी के पुत्र जीवराज के पुत्रके लिये दिगम्बर
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy