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________________ ( ३७ ) भवत्पूर्वजैर्गन्धहस्तित्व मुक्तं, .. तदैव क्रमादागतं पूर्वजेषु । सदा भावयन्तोऽधुनावि सभावं, भवत्सनिधि प्राप्त शोभाविशेषान् ॥१०२॥ पाठकाः सकलशास्त्र पाठकाः शब्दशास्त्रमुरूमध्य जीगपन् । ज्ञानतस्तिलकनामक यकं पाणिनीय मन दर्पणार्पणम् ॥१०॥ धर्मवर्द्धन के शिष्य कान्हजी जिनका दीक्षानाम कीर्तिसुन्दर था। वह भी अच्छे कवि थे। - इनके रचित तिनोक्त । ग्रन्थ प्राप्त हैं। '[२] अवन्तिसुकमाल चौढालिया-सं० १७५७, मेड़ता। २] , मांकण रास सं० १७५७, मेड़ता। [३] अभयकुमारादि पांच साधु रास-स० १७५६, जयतारण। [४] ज्ञान छत्तीसी-सं० १७५६ श्रावण २, जयतारण । [५] कौतुक बत्तीसी-सं० १७६१ आपाढ । [६] कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका वृत्ति-सं० १७६१ अक्षय __ तृतीया (पन्न १६४ यति बालचन्दजी संग्रह-चित्तोड़ । [७] चौबोली चौपाई-स० १७६२, थानलेनगर । १ इनका मूल नाम नाथा था, जैन दीक्षा स० २७२६ वैशाख वदी ११ को हुई।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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