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________________ ३७२ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली सद्भक्त्या भक्तलोका जिनवरंभवतो यत्र यत्र स्मरन्ति, साक्षात्तेषां समेषां वरमिह हि मुहुर्वाञ्छितं त्वं विधत्से । यात्रामायान्ति तत्ते कति कति च मया प्रत्ययाश्चात्र दृष्टा, हया मे चिक्त्वृतिस्तत इत इत आः कामये नान्य देवम् ॥ २॥ (प्राकृतचित्राक्षराछन्दः ) विविह सुविहिलच्छीवल्लिसंताणमेहं, सुगुणरयणगेहं पत्तसप्पुण्णरेहं । दलियदुरियदाहं लद्धससिद्धिलाह, जलहिमिव अगाहं वंदिमो पासनाहं ॥३॥ (मागधी) शुलपुलनलवललुचिलविनिलमिदपलमानन्द, सकलशुभाशुभशेविटपदशलशीलुहवंद । कलुनाशागल कुलकमलालिदिनेशलदेव, चलनशलोजमहं पनमामि निलंतलमेव ।।४।। ( सौरसेनी) - दटिनीदारनदरनपोय, दुरिदोहहुदासन-अदुलदोय। सपूरिदजगदीजंदुकाम पूरयमह वंछिद पाससामि || || (पसाची) तुहताहतवानलनासघनं, सुहतानसुकोवितगीतगुनं । धरनीसकनीस नत सात, नम पानजिनं सुसुहं तततं ।। ६ ।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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