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________________ ३२८ धर्मवद्धन ग्रन्थावली ते आघो वैठो तिहां रे, अंधारी दिसि आई । फू फू फू तिल फूकि ने रे, खूण बैठो खाय । मु० १६ । दूहा आसंगायत आवियों, तेहवें तेह तलार । पायस भोजन पेखिने, जिमवा करे जिवार |१| जीमण बैठो जुगति सु, सखरी खीर सवाढ | वोल्यो ग्रहपति वारणे, साभलियो तिणसाट |२| हलफलियो उठ्यो हिवें, अटकल कोप उपाय । करें वीनति कणवारीयो, छानों मुझ छिपाय | ३ | तिल घर मे वँसो तुम्हे, पिण ओलै हिज पास । आघा मत पैसौ उहा, विषधर नो छै वास । ४ । ते छिपाय बैठो तिसें, आयो धणीय उमाह । आखर वीहे अंगना, निबलो तोही नाह | ५ | भर्यो थाल दीठो भलो खीर घृत ने खाड | पूछे पति कहो किम किया, मोसु कपट म मांड | ढाल (२) —– कुमरी बोलावें कुदडो ए देसी 1 कहे त्रिया बाता केलवी, आठिम नो दिन आजो रे शिव पारवती पूजिवा, करी खीर तिण काजो रे क० ११ जैति करी नें जीमिवा, हुं बैठी थी एहो रे । जितरे हीय आया तुम्हे, मैं कहिवो सत्यमेवो रे |क० २
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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