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________________ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली - श्री जिनचद्रसूरि अमृतध्वनि रतन पाट प्रतपं रतन जाणइ सक्ल जुगन गच्छनायक जिणचट गुम सोभन तप जप सत्त । चालितो तप जप सत्त तेम तपत्त तेज वखत्त तरणि तग्वत्त तृणसम वित्त त्तजि मदि चित्त त्तुरत चरित्त त्तहि किय हित्त त्तिनि गुपत्त तिनुय मुमन्त त्तेबडि तत्त त्तजित मित्त त्तत्त सिदूत तारितजंत त्तरक जुगन्त त्तरजित धुत्त त्ततु दीपत्तत्तुल रतिपत्तित्तासन मत्त त्रमत दुरित्त त्तिभुवन कित्त त्तवत कवित्त त्तसु अमृतध्वनि धूममी कहै सार १ रतन इति श्री वर्तमान गुरू म्तवना रूप ५२ तत्ते झाड करी नइ . महा अमृतध्वनि जाणिवी ॥ उपकार घ्र पद राग-वृ दादनी सारंग करणी पर उपगार की सब करणी मे अधिकी वरणी, तरणी यह संसार की । क० ॥१॥ कीने गुण ऊपरि गुन करिवी, वात सुतौ व्यवहार की । पिण विनु स्वारथ करण भलाई, अपने जीउ उद्धार की ।का। सुकृती पात्र कुपात्र न सोच, धरै उपमा जलधार की । साची कहिय सुगुरू धम सीमा, सब शास्त्रनि के सार की ।क०।३
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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