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________________ २६० धर्मवद्धन ग्रन्थावली आलोयणा स्तवन ढाल (१) सफल ससार नी ए धन शासन वीर जिनवर तणौ, जास परसाद उपगार थायै घणौ । सूत्र सिद्धात गुरमुख थकी साभली, लहिय समकित्त ने विरति लहिये वली ॥१॥ धर्म नो ध्यान धरि तप जप खप करें, जिण थकी जीव संसार सागर तरै । दोप लागा गुरू मुखहि आलोईयै, जीव निर्मल हुवै वस्त्र जिम धोईयै ।।२।। ढोप लागै तिको च्यार परकार ना, धुर थकी नाम ने अरथ ते धारणा । किणहि कारण वस पाप जे कीजीये, प्रथम ते नाम संकप्प कहीजिये ।।३।। कीजीय जेह कंदर्प प्रमुखे करी, दोष ते बीय परमाद सना धरी । कूदता गरवता होई हिंसा जिहा,. दर्प इण नाम करि दोष तीजौ तिहा ॥४॥ विणसता जीव नै गिनर न करै जिको, चौथौ उट्टीआ दोष ऊपजै तिको । अनुक्रमै च्यार ए अधिक इक एकथी, दोप धरि प्रायचित लेड विवेकथी॥५॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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