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________________ शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह २८५ छोगी सिरपेच मउड़ जोड़े, दड़िए रमै नइ बहसें होड़ें। - सयणा सुजुहार करै मुजरौ, करे भाड चेष्टा कहै वचन बुरौ ११ धरे धरणु झगड़े उल्लंठी, सिर गुंथै बाधैं पालठी । पसारइ पग पहिरइ चाखड़िया, पग झट कि दिरावैदुड़बडियां१२ करदम लूहै मैथुन मंडे, जूंआ वलि अइठि तिहा छंड । ऊघाडै गूझ कर वइदां, का व्यापार तणी केंदा ॥ १३ ॥ जिनहर परनाल नौ नीर धरइ, अंघोले पीवा ठाम भरै । दूपण जिण भवण मे ए दाख्या, देव वंदण भाष्य में जे भाख्या १४ सुज्ञानी श्रावक सगति छता, आसातन टालें बार सता । परमाद वसै काइ थाय, आलोया दोष सहू जाय ॥ १५ ॥ तंवोल नै भोजन पान जुआ, मल मूत्र शयन स्त्री भोग हुआ। थूकण पनही ए जघन दसे, वरज्या जिन मंदिर माहि वस ।१६। द्रव्यत नै भावित दोइ पूजा, एहना हिज भेद कह्या दूजा । सेवा प्रभु नी मन शुद्ध कर, वंछित सुख लीला तेह वरै ॥१७॥ ॥ कलश ॥ इम भव्य प्राणी भाव आणी, विवेकी शुभ वातना । जिन बिव अरचइ परी वरजइ चौरासी आसातना ।। ते गोत्र तीर्थकर ज अरजें नमइ जेहनइ केवली । उवझाय श्री ध्रमसीह वंद्र जैन शासन ते वली ॥१८॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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