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________________ २८० धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली ढाल-३ बेकर जोडी ताम रहती पहिला च्यार कपाय शम करि समकिती, कैंतों सादि मिथ्यामती ए। ए वे हिज लहै मिश्र सत्य असत्य जिहा सरदहणा वेहुं छनी ए॥ १०॥ मिश्र गुणालय माहि मरण लहै नहीं आउ बंध न पडै नवै ए। कैंतो लहि मिथ्यात के समकित लही, मति सरिखी गति परिभवै ए ॥ ११ ॥ च्यार अप्रत्याख्यान उदय करी लहै, __ व्रत विण सुध समकित पणौ ए। ते अविरत गुणठाण तेत्रीस सागर, साधिक थिति एहनी भणौ ए॥ १२ ॥ दया उपशम संवेग निरवेद आसता, समकित गुण पाचे धरै ए। सहु जिन वचन प्रमाण जिनशासन तणी, अधिक अधिक उन्नति कर ए ॥ १३ ॥ केइक समकित पाय पुदगल अरथ ता, उत्कृष्टा भव मे रहै ए । केइक भेदी गंठि अंतरमहूरतै, चढतै गुण शिवपद लहै ए ॥१४॥ च्यार कषाय प्रथम्म त्रिणवली मोहनी, मिथ्या मिश्रसम्यक्तनी ए। साते परकृति जास परही उपशमै, ते उपशम समकित धनी ए॥ १५ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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