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________________ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली इण थकी अढीसे वप श्री महावीर, बहुतर वर्षायुप साते हाथ सरीर । इम सहु बेतालीस सहस वर्ष उणेह, इक कोडि कोडि सागर आदि थी एह । २८ । कलसः-इम अरें तीजे आदि जिणवर, अवर चोथे एमाए । चौवीस जिणवर चितचोखे प्रणमीये बहु प्रेमए । पुररिणी सतरेसे पचीस प्रगट पर्व पजूमणे, वाचक विजयप सानिध धर्ममी मुनि इम भणे ।२६। ६८ भेद अल्पबहुत्व विचार गर्भित स्तवन वीर जिणेसर वढिये, उपगारी अरिहंत । आगम ए जिण उपढिस्या, एओ ज्ञान अनत ||१|| भला अठाणु भेदसों, वोल्या अलप बहुत्त । जिणमें भमियो जीवड़ो, ते सहु वात तहत्ति ॥॥ दाल . सफल ससारनी। सहु थकी अलप नर गर्भज जाणिये (१) एहनी नारि सख्यात गुण आणिये (२) अगनि असंख्यात गुण पन्जत बादरा, (३) ___एहथी गुण असंख्यात अनुत्तर सुरा (४)॥३॥ उपरिम (५) मध्य (६) अधत्रिक त्रिक (७) देवता, अच्युत (८) आरण (6) प्राणत (१०)आनता (११) - एह संख्यात गुण जाणिज्यो अनुक्रमा। सातमीनरक (१२) असंख्यात गुणइमतमा(१३)।४१
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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