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________________ - - . शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह २६१ चौवीसम वर्द्धमान नमु गणधार इग्यार । चवदे सहस जतीस, साहुणी छतीस हजार । १६ । चौवीस जिनना चौदहसे बावन गणधर एम । साहु अठावीस लाख सहस अडतालीस तेम । साधवी लाख चमालीस सहस छयालीस सार । च्यार से उपरि छए धडे ए संख्याधार । १७ । किणहीक सूत्रे ओछा अधिका कह्या अणगार । तेपिण चौवीसा ना पूरा नहिं अधिकार । श्री आवश्यक सूत्र पूरा सहु सुविचार । तिणथी संख्या जाणी वंदु वारंवार । १८ । कलसः इम सतरे से तेपने वरसें दीप परब सुदीसए । श्री नगर बीकानेर अधिका विजयहर्ष जगीसए । धर्मध्यान मन धरि कहे पाठक धरमसी नितमेवए । . चौवीस जिन धन राज जेहने ध्याइये धर्म देवए । १६ । .. चौवीस जिन अंतर काल, देहायु स्तवन पचपरमेष्टि मन शुद्ध प्रणमीकरी, , धरमहित आगम अर्थ हीयडे धरी। कहिस चौवीस जिन जिन तणो आतरो, • आउ थित देह परिमाण मत पातगै ।। प्रथमही सुखम सुखमा आरो जाणए, च्यार कोडा कोडि सागर परिमाणए । सत कातेर पाठक
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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