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________________ - - गुरु गीतादि संग्रह २४५ पारिख साह भला पुण्यातमा, सामीदास सूरदासो जी। पदठवणो कीधी मन प्रेमसु, वित्त खरच्या सुविलासो जी।। रूडी विधि कीधा रातीजुगा, साहमीवच्छल सारो जी। पटकूले कीधी पहिरावणी, सहु संघने श्रीकारो जी ॥४॥ संवत् सतरै बासठ समै, उच्छव बहु आसाढो जी। सुदि इग्यारस पद महोत्सव सज्यो, चंदकला जस चाढो जी।५ साहिलेचा बहुरा जगि सलहीय, पींचा नख परसंसो जी । मात पिता रूपचंद सरूपदे, तेहने कुल अवतंसोजी ॥ ६॥ प्रतपो एह घणा जुग गच्छपति, श्रीजिनसुखसूरिदो जी । श्रीधर्मसी कहै श्रीसंघने सदा, अधिक करौ आणंदो जी ॥ ७॥ (२) कवित सकल गुण जाण वाखाण मुख सरसती, कलाधर अवर नर मीढ केहौ। खर आचार सुविचार जस खरतरे, ___ जैनसुखसूरि जिनचंद जेहौ ॥१॥ सुगुरू निज सूरिमंत्र हाथसु सुपीयौ, .. दीपीयौ दशो दिश सुजस दावौ। कमल चढ़ती कला देखि सहु को कहै, चंद पाट दूसरौ चंद चावौ ॥२॥ अगम आगम तरक शास्त्र जाणइ अर्थ, छात्रधर छहुं छक गुणे छाजइ ।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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