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________________ दश श्रावक २२५ २२५ दश श्रावक सज्झाय सूधै मन प्रणमौ दश श्रावक मोटी ऋद्धि बारें व्रत धार । वीर जिणंदइ एह वखाण्या, सातमे अंग तणे अधिकार । सू०।१॥ वाणीय गाम नगर तिहा आणंद, बारह कौडि सोनईया सार । दस गौ सहस तणो इक गोकुल, एहवा गोकुल जेहनै च्यार ।सू०।२। कोडि अढ़ार सोवन छ गोकुल, चंपापुरि कामदेव जगीस। तीजी चुलणीप्रिया बनारसी, आठ गोकुल धन कोडि चौवीस ।३। 'सुरादेव वाणारसी नयरइ, चुलशतक आलभीया सार। कंपिल्ले नय% कुडकोलिक, छ ब्रज कोडि अढ़ार अढ़ार सू०४ पोलासुपुरि सदालपुत्र सत्तम, तीन कोडि धन गोकुल एक । आठमौ महाशतक राजग्रही, कोडि चौवीस वजआठ विवेक। नवमो नदणीप्रिया सावत्थी, दशमौ लेतीया पिया निशाना वार बार कोडि धन बिहुन, च्यार च्यार गोकुल अभिराम । व्रत पाली अणशण करि पहुंता, पहिलै देवलोक परधान । च्यार च्यारपल्योपम आयुष, धर्मसीह धरै धर्म ध्यान सूपण
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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