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________________ - - - २१२ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली चोखा चोवा चंदना हो, घसि केसर घनसार। अद्भुत मृगमद अरगजे हो, अरचता सुख अपार ॥५॥ ज० नित ही नाटक नव नवा हो, दो दो दमकै मृदंग । झमकित झाझरि भालरी हो, मोहत मन मुख चंग ॥ ६ ॥ ज० तत नक ताथेड ताथेइ तटक दे तोडत तान । फढक दे अति भली देत है फेरी, गावत विचि विचि ग्यान ७० पूजा यु करता प्रभुजी की, सहीय मिले सुख साज । दस दिस साहे वहु जस दीप, परभवि सिवपुर राज ॥ ८॥ ज० पूरण वंछित पास जी हो, पुहवी माहे प्रधान । वाचक विजयहरप सुख वाधे, धरमसी धरत हीध्यान हाज० श्रीआबू तीर्थ स्तवन आबू आज्यो रे आबू आज्यो २ आबू आज्यो वहिला थाज्यो। मानव नौ भव सफल करौ तो, यात्रा काजे जाज्यो। वामानंदन वंदन वहिला, अचलगढे पिण आज्यो॥१॥ हा रे म्होरा सयणा साचा वयण सुणेज्यो, अधिको तीरथ आबू, सहु पातक मल साबू, भल भल २ देवल जोज्यो। देवल जोज्यो हरखित होज्यो, धुरि पातक मल धोज्यो। सहु सुखदायक तीरथ नायक, ज्योवा लायक ज्योज्यो ।।२॥ हा रे सयणा नयणा सफल करेज्यो, दूरथी देवल ढीस, हीयडौ तिम तिम हीसै। लुलि लुलि लुलि लुलि सीस नमाज्यो,
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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