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________________ १६४ वर्मवद्धन ग्रन्थावली नंटरे नींगर दे ज्यु अम्मा, त्यु मैडै तु साम, जौलु अन्दर जेद हैं, नहीं भुल्ला तेडा नाम । स०३। सच्ची एक तुसाडी सेवा, दूजी गल्ल न दिल्ल, आस पूरी हुण दास दी, करंदा हो काहे ढिल्ल ।स०४। देव अवर दी सेव करंदै, दिट्ठा मै दोजग्ग। हुण उण उज्जड ना भमू, मन मान्या तैड़ा मग्ग ।स० ॥ रज्या होइ सु कित्थु जाणे, भुक्खादा दिल दुक्ख । नाही देंदा न्याय तु, सिवपुरदा मैनु सुक्ख ।स०६। नव निधि सिद्धि तुसाडे नामै, दौलति हदा दीह, विजयहरष सुख सपजै, धरे ध्यान सदा ध्रमसीह । स० ७ ॥ पार्श्वनाथ स्तवन नैणा धन लेखु देखू, देखु मुख अति नीको, जीहा धन जाणु गावु , गाईंजस जिनजी को। धन धन मुझ सामी, तु त्रिभुवन सिरि टीकौ ॥ १ ॥ चित सूधैं करि हु नित सुणिवा, चाहूं तुझ उपदेस अमी को ।।२।। देवल देवल देव घणा ही दीसे, तुझ सम जस न कही को ।।३।। पुन्य करि प्रभु साहिब पायो मोई, पायौ मे राज पृथी को ||2|| कीजै मया मुभा सेवक कीजैसाची, कीजो मत अवर हथीको।५। म्प अनुपम तेज विराजे तेसौ, सूरिज को न ससी को ।।६।। यास जिणेसर सहु मनवंछित पूरै, साहिब श्री 'ध्रममी को ।।७।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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